पिंजरे से तो आजाद हो गई , पर पिंजरा दिल से कैसे न | हिंदी Poetry

"पिंजरे से तो आजाद हो गई , पर पिंजरा दिल से कैसे निकालूं , खुलके जीने की ये एक ख्वाहिश, आखिर कभी भी होगी पूरी,, दिन और रात तो सबकी है ना, फिर आज तक क्यों नहीं देख पाई , खाली सड़क ,और खुला आसमान , क्या ये है सिर्फ एक भ्रम , या कह सकते हैं इसे एक आजादी या कह सकते हैं इसे एक आजादी ....... ©Pragya Karn"

 पिंजरे से तो आजाद हो गई , 
पर पिंजरा दिल से कैसे निकालूं ,
खुलके जीने की ये एक ख्वाहिश,
 आखिर कभी भी होगी पूरी,,
दिन और रात तो सबकी है ना,
फिर आज तक क्यों नहीं देख पाई ,
खाली सड़क ,और खुला आसमान ,
क्या ये है सिर्फ एक भ्रम ,
या कह सकते हैं इसे एक आजादी 
या कह सकते हैं इसे एक आजादी .......

©Pragya Karn

पिंजरे से तो आजाद हो गई , पर पिंजरा दिल से कैसे निकालूं , खुलके जीने की ये एक ख्वाहिश, आखिर कभी भी होगी पूरी,, दिन और रात तो सबकी है ना, फिर आज तक क्यों नहीं देख पाई , खाली सड़क ,और खुला आसमान , क्या ये है सिर्फ एक भ्रम , या कह सकते हैं इसे एक आजादी या कह सकते हैं इसे एक आजादी ....... ©Pragya Karn

#sad_feeling #realityofsociety #save_girls

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