रोशनदान की जाली से
छनकर आई हुई चंद किरणें ही
अंधेरे कमरे के लिए हैं
सूरज के बराबर
तपते रेगिस्तान में
किसी रास्ते पर बनाई पानी की
छोटी सी टंकी ही
सूखते गले के लिए सागर है
जाली से दिखता हुआ
घर का छोटा सा आंगन ही
पिंजरे में बंद पंछी के पंखों के लिए
होता है आसमान
इसी तरह दुःखों के घेराव में
फंसे हुए मनुष्य को भी
कुछ पल मिलने वाली
खुशियों को ही समझना होगा
अपना सम्पूर्ण जीवन
🖋️🖋️🖋️.....देशराज गुर्जर
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