सारे अल्फ़ाज़ दबा के हुई तारी चुप्पी। चीर डालेगी द

"सारे अल्फ़ाज़ दबा के हुई तारी चुप्पी। चीर डालेगी दिलों को ये कटारी चुप्पी। बोल दोगे, तो वो अल्फ़ाज़ पराए होंगे, कितने मा'नी है छुपाए ये कुंवारी चुप्पी। बोलती हो, तो मेरे दिल में उतर जाती हो, है अखरती मुझे दिन रात तुम्हारी चुप्पी। वो समझ बैठे कहीं तुमको है मंज़ूर ये सब, तोड़ दो इसको, न अब रखना ये जारी चुप्पी। हौसले ज़ुल्म के उस वक़्त से बढ़ने हैं लगे, जब से मज़लूम ने घबरा के है धारी चुप्पी। यूं तो लगती है अभी तुमको ये आसान बहुत, सोच लो, कल कहीं पड़ जाए न भारी चुप्पी। है तो अफ़सोस मगर होता यही है अक्सर, है गया जीत इधर शोर, तो हारी चुप्पी। (दिनेश दधीचि)"

 सारे अल्फ़ाज़ दबा के हुई तारी चुप्पी।
चीर डालेगी दिलों को ये कटारी चुप्पी।


बोल दोगे, तो वो अल्फ़ाज़ पराए होंगे,
कितने मा'नी है छुपाए ये कुंवारी चुप्पी।


बोलती हो, तो मेरे दिल में उतर जाती हो,
है अखरती मुझे दिन रात तुम्हारी चुप्पी।


वो समझ बैठे कहीं तुमको है मंज़ूर ये सब,
तोड़ दो इसको, न अब रखना ये जारी चुप्पी।


हौसले ज़ुल्म के उस वक़्त से बढ़ने हैं लगे,
जब से मज़लूम ने घबरा के है धारी चुप्पी।

यूं तो लगती है अभी तुमको ये आसान बहुत,
सोच लो, कल कहीं पड़ जाए न भारी चुप्पी।


है तो अफ़सोस मगर होता यही है अक्सर,
है गया जीत इधर शोर, तो हारी चुप्पी।
(दिनेश दधीचि)

सारे अल्फ़ाज़ दबा के हुई तारी चुप्पी। चीर डालेगी दिलों को ये कटारी चुप्पी। बोल दोगे, तो वो अल्फ़ाज़ पराए होंगे, कितने मा'नी है छुपाए ये कुंवारी चुप्पी। बोलती हो, तो मेरे दिल में उतर जाती हो, है अखरती मुझे दिन रात तुम्हारी चुप्पी। वो समझ बैठे कहीं तुमको है मंज़ूर ये सब, तोड़ दो इसको, न अब रखना ये जारी चुप्पी। हौसले ज़ुल्म के उस वक़्त से बढ़ने हैं लगे, जब से मज़लूम ने घबरा के है धारी चुप्पी। यूं तो लगती है अभी तुमको ये आसान बहुत, सोच लो, कल कहीं पड़ जाए न भारी चुप्पी। है तो अफ़सोस मगर होता यही है अक्सर, है गया जीत इधर शोर, तो हारी चुप्पी। (दिनेश दधीचि)

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