जिनगी ला सजाय बर संगी, शहर आय ला पड़थे ।
दू रुपिया पईसा बर, खुन पसीना बोहाय ला पड़थे ।
अऊ मन भितरी के दुःख पिरा ला मन मा राख के
संगवारी,गर्मी हो या सर्दी रोज कमाय ला पड़थे ।
©_Ram_Laxman_
जिनगी ला सजाय बर संगी, शहर आय ला पड़थे ।
दू रुपिया पईसा बर, खुन पसीना बोहाय ला पड़थे ।
अऊ मन भितरी के दुःख पिरा ला मन मा राख के
संगवारी,गर्मी हो या सर्दी रोज कमाय ला पड़थे ।