"उस रात मेरा क्या कुसूर था???
क्यों तमीज़दारी पे हवस-कारी हावी था।
मैं तो सिर्फ़ अपने काम में मशग़ूल थी।
मैंने वो सब किया जो समाज है कहता।"
"वो बोले कि देर रात बाहर जाना सुरक्षित नहीं।
तो मैं अपनी हॉस्पिटल के परिसर में ही थी।
अरे कपड़े पूरे पहनोगी तो
लड़कों की बुरी नज़र पड़ेगी नहीं।
तो मैं अपने चिकित्सक के वर्दी में ही थी।"
"कहते है किसी को देखकर हंसना बोलना नहीं।
तो मैं तो सिर्फ़ अपने रोगियों की परेशानियां सुनने में थी।
फिर मैनें ऐसा क्या किया कि इन दरिंदो को
मेरे शरीर के साथ छेड़खानीं करने की
इतनी हौसला-अफ़ज़ाई मिली।"
"और मुझे!!! मुझे तो मौत से भी बद-तर मौत मिली।
और मेरे परिवार को ता-'उम्र दुखों की सौग़ात मिली।"
©शिखा शर्मा
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