जब मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे तब तुम कहाँ थे. इस | हिंदी कविता

"जब मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे तब तुम कहाँ थे. इस दर्द को हम अकेले सह रहे थे तब तुम कहाँ थे. जब मेरे कमरे में एक सन्नाटा एक तन्हाई फैली थी, जब तुम्हारी बात खुद से कह रहे थे तब तुम कहाँ थे. याद होगा हम दोंनो ने सपनों का महल बनाया था, हमारे सपनों के महल ढह रहे थे तब तुम कहाँ थे. मै बोलता था और मुझे सुनने वाला था अकेला मै, जब तुम्हारे बिना हम रह रहे थे तब तुम कहाँ थे.. ©Akalpit kanha"

 जब मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे तब तुम कहाँ थे.
इस दर्द को हम अकेले सह रहे थे तब तुम कहाँ थे.

जब मेरे कमरे में एक सन्नाटा एक तन्हाई फैली थी,
जब तुम्हारी बात खुद से कह रहे थे तब तुम कहाँ थे.

याद होगा हम दोंनो ने सपनों का महल बनाया था,
हमारे सपनों के महल ढह रहे थे तब तुम कहाँ थे.

मै बोलता था और मुझे सुनने वाला था अकेला मै,
जब तुम्हारे बिना हम रह रहे थे तब तुम कहाँ थे..

©Akalpit kanha

जब मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे तब तुम कहाँ थे. इस दर्द को हम अकेले सह रहे थे तब तुम कहाँ थे. जब मेरे कमरे में एक सन्नाटा एक तन्हाई फैली थी, जब तुम्हारी बात खुद से कह रहे थे तब तुम कहाँ थे. याद होगा हम दोंनो ने सपनों का महल बनाया था, हमारे सपनों के महल ढह रहे थे तब तुम कहाँ थे. मै बोलता था और मुझे सुनने वाला था अकेला मै, जब तुम्हारे बिना हम रह रहे थे तब तुम कहाँ थे.. ©Akalpit kanha

जब मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे तब तुम कहाँ थे.
इस दर्द को हम अकेले सह रहे थे तब तुम कहाँ थे.

जब मेरे कमरे में एक सन्नाटा एक तन्हाई फैली थी,
जब तुम्हारी बात खुद से कह रहे थे तब तुम कहाँ थे.

याद होगा हम दोंनो ने सपनों का महल बनाया था,
हमारे सपनों के महल ढह रहे थे तब तुम कहाँ थे.

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