White ॥ अनुरोध ॥
आँखों में
आँसुओं की नदी के किनारे जैसे रहता है दुःख
वैसे ही तुम रहती हो मेरी हर साँस में
गरमी की तरह.
मेरे वश में कहाँ है कि मैं कहूँ साँस से
गरमी पर सिर्फ सूरज का हक है.
मैं कहूँ आँखों से
तुम सिर्फ आँसुओं के लिए बनी हो
दुःख को मत बसाओ अपने हृदय में.
आज मैं हार कर तुमसे कहता हूँ
मैं अपराधी हूँ और अब दण्ड पाकर
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साँसों की गरमी और आँखों के नीचे जमा दुःख से
आओ स्वीकार करो मुझे
मृत्यु बन कर.
अंततः मृत्यु की प्रतीक्षा में ही तो जीते हैं हम!
©Jain Saroj
#love_shayari अच्छे विचार शायरी The Advisor @SONA DEVI Nîkîtã Guptā @Anupriya @Anshu writer