कहिये भैया कहाँ जाना चाहते हैँ "| बैल गाडी चलाते

""कहिये भैया कहाँ जाना चाहते हैँ "| बैल गाडी चलाते हुए राजेश बोला "उस परदेस जहाँ समुन्द्र हिलोरे लेता हुआ पैरों में तो आ गिरता है पर खिड़की से बस मुट्ठी भर आसमान देखने को ही मिलता है | छत नही है वहाँ, और छत बनाने के लिये लोगों को आसमान सा ऊंचा होना पड़ता है |आँखें जहाँ तक पहुँचे बस भीड़, कोई हँस रहा है, कोई रो रहा है, मानों हर भाव शहर ने अपने अंदर रखा हुआ है, वो शहर जितना बड़ा , उतना ही बूढा है | आप लीपा पोती से उसके जज्जर चेहरे को बदल सकते हैँ , पर उसके झुर्रियों को छुपा नही सकते "जैसे वहाँ की भीड़ अपने दुःख नही छुपा सकती |बक्शे बराबर कमरे है भैयाजी और महंगाई ने कमर तोड़ रखी है, ये दुनिया उस दुनिया से बिल्कुल अलग है |देखिएगा वापस गांव ही आएंगे आप | "क्या करें भैया, मंज़िल का तो पता नही पर सफर तो शहर ही है," बड़ी उदासी से मगन जवाब देता है , और ज़ब कामयाब सफर होता है, तभी घर घर होता है |मैं जाते हुए थोड़ा सा सूरज अपनी ज़ेब में रख ले जा रहा हूँ | जब भी वो दुनिया इस दुनिया से अलग लगेगी दोपहरी में भागते दौड़ते कदम इस सूरज को दिखा दूँगा जैसे बचपन में दिखा दिया करता था बचपन के सामने हाजरी देने के लिए | शहर को थोड़ी सी धूप मिल जाएगी और मुझे थोड़ी ठंडक | "सही कहे हो, "बातें अच्छी कर लेते हो भैया "राजेश बोला , तुम हामी जल्दी भर लेते हो, मगन हँसते हुए बोला | "अच्छा जल्दी करो मेरी ट्रैन छूट जाएगी", मगन हड़बड़ाते हुए बोला | "अरे रे सफर ही तो है भैया जी फिर से चल दीजियेगा",रमेश चुटकी लेते हुए बोला, दोनों हँस देते, राजेश बैलगाड़ी की रफ़्तार बढ़ाता है | नेहा वशिष्ठ"

 "कहिये भैया कहाँ जाना चाहते हैँ "| बैल गाडी चलाते  हुए राजेश बोला "उस परदेस जहाँ समुन्द्र हिलोरे लेता हुआ पैरों में तो आ गिरता है पर खिड़की से बस मुट्ठी भर आसमान देखने को ही मिलता है |
छत नही है वहाँ, और छत बनाने के लिये लोगों को आसमान सा ऊंचा होना पड़ता है |आँखें जहाँ तक पहुँचे बस भीड़, कोई हँस रहा है, कोई रो रहा है, मानों हर भाव  शहर ने अपने अंदर रखा हुआ है, वो शहर जितना बड़ा , उतना ही बूढा है | आप लीपा पोती से उसके  जज्जर चेहरे को बदल सकते हैँ , पर उसके झुर्रियों को छुपा नही सकते "जैसे वहाँ की भीड़ अपने दुःख नही छुपा सकती |बक्शे बराबर कमरे है भैयाजी और महंगाई ने कमर तोड़ रखी है,  ये दुनिया उस दुनिया से बिल्कुल अलग है |देखिएगा वापस गांव ही आएंगे आप |
"क्या करें भैया, मंज़िल का तो पता नही  पर  सफर तो शहर ही है," बड़ी उदासी से मगन जवाब देता है , और ज़ब कामयाब सफर होता है, तभी घर घर होता है |मैं जाते हुए थोड़ा सा सूरज अपनी ज़ेब में रख ले जा रहा हूँ | जब भी वो दुनिया इस दुनिया से अलग लगेगी दोपहरी में भागते दौड़ते कदम इस सूरज को दिखा दूँगा जैसे बचपन में दिखा दिया करता था बचपन के सामने हाजरी देने के लिए | शहर को थोड़ी सी धूप मिल जाएगी और मुझे थोड़ी ठंडक |
"सही कहे हो, "बातें अच्छी कर लेते हो भैया "राजेश बोला , तुम हामी जल्दी भर लेते हो, मगन हँसते हुए बोला | 
"अच्छा जल्दी करो मेरी ट्रैन छूट जाएगी", मगन हड़बड़ाते हुए बोला |
 "अरे रे सफर ही तो है भैया जी फिर से चल दीजियेगा",रमेश चुटकी लेते हुए बोला, दोनों हँस देते,  राजेश बैलगाड़ी की रफ़्तार बढ़ाता है  |
नेहा वशिष्ठ

"कहिये भैया कहाँ जाना चाहते हैँ "| बैल गाडी चलाते हुए राजेश बोला "उस परदेस जहाँ समुन्द्र हिलोरे लेता हुआ पैरों में तो आ गिरता है पर खिड़की से बस मुट्ठी भर आसमान देखने को ही मिलता है | छत नही है वहाँ, और छत बनाने के लिये लोगों को आसमान सा ऊंचा होना पड़ता है |आँखें जहाँ तक पहुँचे बस भीड़, कोई हँस रहा है, कोई रो रहा है, मानों हर भाव शहर ने अपने अंदर रखा हुआ है, वो शहर जितना बड़ा , उतना ही बूढा है | आप लीपा पोती से उसके जज्जर चेहरे को बदल सकते हैँ , पर उसके झुर्रियों को छुपा नही सकते "जैसे वहाँ की भीड़ अपने दुःख नही छुपा सकती |बक्शे बराबर कमरे है भैयाजी और महंगाई ने कमर तोड़ रखी है, ये दुनिया उस दुनिया से बिल्कुल अलग है |देखिएगा वापस गांव ही आएंगे आप | "क्या करें भैया, मंज़िल का तो पता नही पर सफर तो शहर ही है," बड़ी उदासी से मगन जवाब देता है , और ज़ब कामयाब सफर होता है, तभी घर घर होता है |मैं जाते हुए थोड़ा सा सूरज अपनी ज़ेब में रख ले जा रहा हूँ | जब भी वो दुनिया इस दुनिया से अलग लगेगी दोपहरी में भागते दौड़ते कदम इस सूरज को दिखा दूँगा जैसे बचपन में दिखा दिया करता था बचपन के सामने हाजरी देने के लिए | शहर को थोड़ी सी धूप मिल जाएगी और मुझे थोड़ी ठंडक | "सही कहे हो, "बातें अच्छी कर लेते हो भैया "राजेश बोला , तुम हामी जल्दी भर लेते हो, मगन हँसते हुए बोला | "अच्छा जल्दी करो मेरी ट्रैन छूट जाएगी", मगन हड़बड़ाते हुए बोला | "अरे रे सफर ही तो है भैया जी फिर से चल दीजियेगा",रमेश चुटकी लेते हुए बोला, दोनों हँस देते, राजेश बैलगाड़ी की रफ़्तार बढ़ाता है | नेहा वशिष्ठ

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