ये एहतियात ये फ़िक़्रों का सिलसिला रखना मैं किसी रोज़ | हिंदी Shayari

"ये एहतियात ये फ़िक़्रों का सिलसिला रखना मैं किसी रोज़ भी आ जाऊँ दर खुला रखना तमाम रात यही सोचने में गुज़री है क्यूँ तुमने हमसे कहा था कि फाँसला रखना शमसुल हसन "शम्स""

 ये एहतियात ये फ़िक़्रों का सिलसिला रखना
मैं किसी रोज़ भी आ जाऊँ  दर खुला रखना

तमाम   रात   यही   सोचने   में   गुज़री  है
क्यूँ तुमने हमसे कहा था कि फाँसला रखना

शमसुल हसन "शम्स"

ये एहतियात ये फ़िक़्रों का सिलसिला रखना मैं किसी रोज़ भी आ जाऊँ दर खुला रखना तमाम रात यही सोचने में गुज़री है क्यूँ तुमने हमसे कहा था कि फाँसला रखना शमसुल हसन "शम्स"

दर खुला रखना
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