जिंदगी के ये किस दौर से हम गुजर रहे हैं जी भी नही | हिंदी कविता

"जिंदगी के ये किस दौर से हम गुजर रहे हैं जी भी नही रहे और जिये जा रहे हैं जिम्मेदारियों का बोझा सर पे लिए जा रहे हैं जीने के नाम पर हर रोज मरे जा रहे हैं बेहिसाब ख्वाहिशो को रोज दफन किये जा रहे हैं मुस्कुराने का बहाना करके हर रोज रोये जा रहे हैं ढूंढ रहे हैं खुद को किसी मंज़िल की ओट में हर रोज मन्ज़िल की तलाश में खुद को खोये जा रहे हैं ©ek musafir (Prabhu singh)"

 जिंदगी के ये किस दौर से हम गुजर रहे हैं
जी भी नही रहे और जिये जा रहे हैं

जिम्मेदारियों का बोझा सर पे लिए जा रहे हैं
जीने के नाम पर हर रोज मरे जा रहे हैं

बेहिसाब ख्वाहिशो को रोज दफन किये जा रहे हैं
मुस्कुराने का बहाना करके हर रोज रोये जा रहे हैं
ढूंढ रहे हैं खुद को किसी मंज़िल की ओट में
हर रोज मन्ज़िल की तलाश में खुद को खोये जा रहे हैं

©ek musafir (Prabhu singh)

जिंदगी के ये किस दौर से हम गुजर रहे हैं जी भी नही रहे और जिये जा रहे हैं जिम्मेदारियों का बोझा सर पे लिए जा रहे हैं जीने के नाम पर हर रोज मरे जा रहे हैं बेहिसाब ख्वाहिशो को रोज दफन किये जा रहे हैं मुस्कुराने का बहाना करके हर रोज रोये जा रहे हैं ढूंढ रहे हैं खुद को किसी मंज़िल की ओट में हर रोज मन्ज़िल की तलाश में खुद को खोये जा रहे हैं ©ek musafir (Prabhu singh)

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