दफ्तर से घर लौटते हुए रात कि बारिश में
मै भिगा था और थंड तम्हें लग रही थी।
बंद कमरे में , बंद बत्ती में
मौमबत्ती सा तुम पिघलना चाहती थी।
खिड़की से आती हवाओ से और अपने
रेशमी जुल्फ़ों से तुम मुझे रिझा रही थी।
ना जाने वो केसी रात थी , ऊस सन्नाटे में
दो रुहें बस आपस में बात कर रहे थे।
रातभर बरसात और दो रुहों कि बांतों में
सबेरा केसे हुआ इस बात से दोनो हेरान थे।
©Manthan's_kalam
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