"#OpenPoetry तेरे ख्वाब क्यों देखूँ
मेरे भी अपने ख्वाब हैं
तेरे बातों में क्यु उलझु
मेरे भी कुछ अलफाज हैं
तेरी यादों को संजोता था
न जाने कैसे सोता था
तकिये ने मुझ से ये कहा था
तु आदमी है या दरिया है
तु क्यु घुट घुट कर जिता है
जब तेरे अंदर भी चिता है
जब तेरे अंदर भी चिता है ।"