White उजाड़ के गुलिस्तां को गुल बनाने में

"White उजाड़ के गुलिस्तां को गुल बनाने में नफरतों से मोहब्बत का पुल बनाने में बन नही रही तुमसे कागज पर तस्वीर तुम लगे हो काग को बुलबुल बनाने में जोड़ने की बात कर के संग संग चलाने में कर के पाप खुद ही गंगा नहलाने में भारत को जोड़-तोड़ रहे ये इंडिया वाले और तुम लगे हो अपनी मशाल जलाने में अपनो को छोड़ गैरों का घर बसाने में दिल के करीब थे जो उन्हें यूँ सताने में कल तक जो दे रहे जी भर के गालियां लाज न आई तुम्हे उन को अपनाने में खोटा सिक्का बाजार में अपना चलाने में यारों का साथ छोड़ गैरों को बुलाने में राजनीति ने तुमको यूँ अंधा कर दिया तुम भूल गए कौन था मुंबई जलाने में हो रहे हो खुश तुम जिसके हार जाने से कतरा रहे हो आज जिसके द्वार जाने में भूल-कर भी नही बात ये भूल पाओगे पंद्रह साल लग गए उस से पार पाने में अल्फ़ाज़-ए-नीरज✍🏻 ©Niraj Pandey"

 White उजाड़  के   गुलिस्तां   को  गुल  बनाने  में 
नफरतों  से  मोहब्बत  का  पुल  बनाने  में
बन  नही  रही  तुमसे  कागज  पर  तस्वीर 
तुम  लगे  हो  काग  को बुलबुल  बनाने में 

जोड़ने की बात कर के संग संग चलाने में 
कर  के  पाप  खुद  ही   गंगा  नहलाने  में 
भारत  को जोड़-तोड़  रहे ये  इंडिया वाले
और तुम लगे हो अपनी मशाल  जलाने में

अपनो  को  छोड़  गैरों  का  घर बसाने में 
दिल  के  करीब  थे  जो  उन्हें यूँ सताने में
कल  तक  जो  दे रहे जी भर के  गालियां
लाज  न  आई  तुम्हे  उन  को  अपनाने में

खोटा सिक्का बाजार में अपना  चलाने में 
यारों  का  साथ  छोड़  गैरों  को  बुलाने में
राजनीति  ने  तुमको  यूँ  अंधा  कर  दिया
तुम  भूल  गए  कौन  था  मुंबई  जलाने में

हो  रहे  हो खुश  तुम जिसके हार जाने से 
कतरा  रहे  हो  आज जिसके द्वार जाने में 
भूल-कर  भी  नही  बात  ये  भूल  पाओगे 
पंद्रह  साल  लग  गए  उस  से पार पाने में 

अल्फ़ाज़-ए-नीरज✍🏻

©Niraj Pandey

White उजाड़ के गुलिस्तां को गुल बनाने में नफरतों से मोहब्बत का पुल बनाने में बन नही रही तुमसे कागज पर तस्वीर तुम लगे हो काग को बुलबुल बनाने में जोड़ने की बात कर के संग संग चलाने में कर के पाप खुद ही गंगा नहलाने में भारत को जोड़-तोड़ रहे ये इंडिया वाले और तुम लगे हो अपनी मशाल जलाने में अपनो को छोड़ गैरों का घर बसाने में दिल के करीब थे जो उन्हें यूँ सताने में कल तक जो दे रहे जी भर के गालियां लाज न आई तुम्हे उन को अपनाने में खोटा सिक्का बाजार में अपना चलाने में यारों का साथ छोड़ गैरों को बुलाने में राजनीति ने तुमको यूँ अंधा कर दिया तुम भूल गए कौन था मुंबई जलाने में हो रहे हो खुश तुम जिसके हार जाने से कतरा रहे हो आज जिसके द्वार जाने में भूल-कर भी नही बात ये भूल पाओगे पंद्रह साल लग गए उस से पार पाने में अल्फ़ाज़-ए-नीरज✍🏻 ©Niraj Pandey

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