समेटते रह गए दिल के टुकड़ों को हम हर ज़र्रे में
टूटे सपने और हम खुशियां और ख़्वाब समेटते
रहे
खेल कर गए वो हमारे दिल से जाने किस रकीब के लिए
और हम वो शख्स थे जनाब जो बिखरे हुए थे हर तरह से मगर उनसे इक शिकायत तक न किए
©Vk Vivek
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