वो रो दे अगर कभी किसी बात पर ,
तो मुझे उसकी मां बनना पड़ता है ।।
तेरे दौर-ए-इश्क के तरीक़े से ग़ालिब आज का इश्क़ बेहतर है ।।
जहां हर रिश्ता समझना पड़ता है ।।
वो कह दे अगर झूठ तो उसे सच समझना पड़ता है ।।
तेरे दौर-ए-इश्क़ के तरीक़े से ग़ालिब आज का इश्क बेहतर है ।।
जहां हर जज़्बात समझना पड़ता है ।।
वो कह दे अगर तौर -ए- इश्क समझना पड़ता है ।।
तेरे तौर-ए-इश्क के दौर से ग़ालिब आज का इश्क बेहतर है ।।
जहां हर ख्वाहिश को संजोना पड़ता है ।।
माना ग़ालिब के तूं आज भी जिंदा है ।।
पर तेरे दौर का इश्क़ आज सच में मुर्दा है ।।
यहां करके इश्क जिस्म से जन्मों के झूठे वादे करना पड़ता है ।।
तेरे दौर का इश्क़ ही बेहतर था जहां इश्क मरकर भी जिंदा लगता है ।।
आज यहां इन बेजानों में ज़िंदा होने का नाटक करना पड़ता है ।।
@लेखकRai
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