लग रहा है डर।। कोई गम है जो खा रहा है ।।
मेरी जुबां का है असर ।। संसार डगमगा रहा है।।
मैं अकेला तो हू नही ।। मगर रिश्ता छूटा जा रहा है ।।
भोज बढ़ रहा है ।। शरीर टूटा जा रहा है ।।
मैं घूम हो रहा हु साए मैं ।।
मेरा सबर काम होता जा रहा है ।।
©Mr. Shayar
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