देश हो या धर्म हो या जाति की ही बात आये,
हिन्द के हर ओष्ठ पर हिंदी ही आ जाती है।
पन्त हो , निराला हो या नाम हो प्रसाद का तो,
बिंदी बिंदी हिंदी की भी विश्व पे छा जाती है।
सूर हुए, तुलसी मीरा ,हुए हे कबीर यही,
कलम के सिपाही की तो बात ही निराली हे।
और बात क्या बताये तुम्हे भूषण सुभद्रा की,
धार छत्रसाल की और रानी झाँसी वाली है।
शब्द शब्द हिंदी का समुन्दर - सा डोल रहा,
अर्थ गूढ़ है जो जलधि में समाए है।
भाषा में प्रवाह है और सार है,विस्तार भी हे,
तभी गुण गान हिंदी के सभी ने गाए हैं।
आस यही श्वास यही, देश की आवाज यही,
भाषा यही देश का अभिमान होना चाहिए।
सुप्त हुए भावों को जगाने वाली भाषा यही,
शब्दो की हे खान यही, शान होना चाहिए।
लो बताओ देश में क्या विडंबना आन पड़ी,
हिंदी की ही बात रखने को हिंदी आई है।
आधुनिकता की होड़ करने लगे है सभी,
हिन्द वाली भूमि पर ही अंग्रेजी छाई है।
✍️ गौतम गुँजाल
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