"वो फिर उठ खड़ी होगी तुम्हें राख कर देगी
वो जवाला है तबाह बेहीसाब कर देगी
करके जो उसका अस्तित्व समाप्त
तुम खुश हुए बैठे हो
अपने को ज्यादा और उसे कम समझे बैठे हो
वो फिर उठ खड़ी होगी
शमशीर बना लेगी
तोड़ कर सारी जंजीरे
अब वो अपनी सरकार बना लेगी
घर हो चाहे कचहरी
हो चाहे कोई भी व्यवसाय
सूझबूझ से कर लेगी वो अपनी राय
रोंद के वो जंगल वो फिर वा़पस आएगी
पोछ के वो आँसू फिर तुमहे ललकारे गी
वो फिर उठ खड़ी होगी
तुम्हें राख कर देगी॥"