रगो में लावा सा जलेगा इस तपन में तू जी सके तो जी
ये ख़ुद की शादी का बंधन है प्यारे ज़रा घुट घुट पी
इस पे बस दो दिन की बहार है फिर चैन है ना करार है
ख़ुद में तू बिखर के जी सके जी
ये खुद की शादी का बंधन है प्यारे ज़रा घुट घुट पी
दिल की लगी में जख्मों को पैबंद से छिपाना होगा
ख़ुद को तू सी सके तो सी
ये खुद की शादी का बंधन है प्यारे ज़रा घुट घुट पी
सिसकियां दिन ,तड़प शाम , बेख्याली रात का मंजर
ख़ुद में तू मर मर के जी सके जी
ये खुद की शादी का बंधन है प्यारे ज़रा घुट घुट पी
©Manish Kumar gupta
#dost