राख़‌ के अंदर, सुलगते आग से निकले तुम पहनकर नक़ाब

"राख़‌ के अंदर, सुलगते आग से निकले तुम पहनकर नक़ाब बेवजह क्यों फिरते थे तुम ताल्लुक तुम्हारा, गिरगिटों से गहरा लगता है रंग बदलते तुम भी,इंसा की भीड़ में कैसे रहते तुम ©Chhaya Kumari shadow"

 राख़‌ के अंदर, सुलगते आग से निकले तुम
पहनकर नक़ाब बेवजह क्यों फिरते थे तुम

ताल्लुक तुम्हारा, गिरगिटों से गहरा लगता है
रंग बदलते तुम भी,इंसा की भीड़ में कैसे रहते तुम

©Chhaya Kumari shadow

राख़‌ के अंदर, सुलगते आग से निकले तुम पहनकर नक़ाब बेवजह क्यों फिरते थे तुम ताल्लुक तुम्हारा, गिरगिटों से गहरा लगता है रंग बदलते तुम भी,इंसा की भीड़ में कैसे रहते तुम ©Chhaya Kumari shadow

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