जिंदगी खेल है मन का जो बहुत खेलता है इंस | हिंदी कविता

"जिंदगी खेल है मन का जो बहुत खेलता है इंसान मन से,मनो नकरात्मकता झेलता है. जीभ को स्वाद, आंखों को सौंदर्य भाता है नाक को सुगंध, त्वचा को कोमल स्पर्श रास आता है कानों को हर समय कर्णप्रिय शब्द चाहिए मालिक बन बैठी इंद्रियों को हमारा गुलाम होना चाहिए मन में दौड़ते इच्छा अश्व को विश्राम चाहिए इच्छाओ पर भी कसी लगाम चाहिए। ©Nidhish Solanki"

 जिंदगी खेल है मन का 
     जो बहुत खेलता है   

इंसान मन से,मनो नकरात्मकता झेलता है.
 जीभ को स्वाद,
आंखों को सौंदर्य भाता  है
नाक को सुगंध,
 त्वचा को कोमल स्पर्श रास आता है
कानों को हर समय कर्णप्रिय शब्द चाहिए
मालिक बन बैठी
इंद्रियों को 
हमारा गुलाम होना चाहिए
मन में दौड़ते इच्छा अश्व को विश्राम  चाहिए 
 इच्छाओ पर भी कसी  लगाम चाहिए।

©Nidhish Solanki

जिंदगी खेल है मन का जो बहुत खेलता है इंसान मन से,मनो नकरात्मकता झेलता है. जीभ को स्वाद, आंखों को सौंदर्य भाता है नाक को सुगंध, त्वचा को कोमल स्पर्श रास आता है कानों को हर समय कर्णप्रिय शब्द चाहिए मालिक बन बैठी इंद्रियों को हमारा गुलाम होना चाहिए मन में दौड़ते इच्छा अश्व को विश्राम चाहिए इच्छाओ पर भी कसी लगाम चाहिए। ©Nidhish Solanki

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