होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे ऐसी औरत | हिंदी कविता

"होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे ऐसी औरतों में होता है सिर्फ अपना स्वार्थ खा जाती हैं घर की सुख - शांति, मेल मिलाप एक घर में कर देती हैं  खड़ी कई दीवार वो जानती हैं घर की नीब हिलाना वो जानती हैं पति को वश में करना और हो हल्ला मचाना वो धीरे धीरे सब खत्म कर देती है सोच, विचार , प्रेम ,सदभाव, अपनापन होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे वो घोल देती है  जहर अपनों में सौतेलेपन का वो हसं देती हैं ,रो देती हैं वो गिरगिट सा रंग बदल लेती हैं वो खा जाती हैं रिश्तों को ,दिम्मक बनकर खोखला कर देती हैं घर की दीवारों को...by Bina singh ©bina singh"

 होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे
ऐसी औरतों में होता है सिर्फ अपना स्वार्थ
खा जाती हैं 
घर की सुख - शांति, मेल मिलाप
एक घर में कर देती हैं  खड़ी कई दीवार
वो जानती हैं घर की नीब हिलाना
वो जानती हैं पति को वश में करना और हो हल्ला मचाना
वो धीरे धीरे सब खत्म कर देती है 
सोच, विचार , प्रेम ,सदभाव, अपनापन
होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे
वो घोल देती है  जहर अपनों में सौतेलेपन का
वो हसं देती हैं ,रो देती हैं 
वो गिरगिट सा रंग बदल लेती हैं 
वो खा जाती हैं 
रिश्तों को ,दिम्मक बनकर खोखला कर देती हैं घर की दीवारों को...by Bina singh

©bina singh

होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे ऐसी औरतों में होता है सिर्फ अपना स्वार्थ खा जाती हैं घर की सुख - शांति, मेल मिलाप एक घर में कर देती हैं  खड़ी कई दीवार वो जानती हैं घर की नीब हिलाना वो जानती हैं पति को वश में करना और हो हल्ला मचाना वो धीरे धीरे सब खत्म कर देती है सोच, विचार , प्रेम ,सदभाव, अपनापन होती हैं कुछ औरतें दया, ममता ,प्रेम से परे वो घोल देती है  जहर अपनों में सौतेलेपन का वो हसं देती हैं ,रो देती हैं वो गिरगिट सा रंग बदल लेती हैं वो खा जाती हैं रिश्तों को ,दिम्मक बनकर खोखला कर देती हैं घर की दीवारों को...by Bina singh ©bina singh

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