प्रिय,
मुझे नही पता चल रहा है,
कि मैं क्या चाहता हूं,
पर तुम्हारी कुछ बाते मेरे मन पर ऐसा कटाक्ष मारती है, कि फिर ठीक करने का नही बल्कि सब से दूर हटने मन कहता है,
पर मैं तुम्हें हर लम्हा याद करता हूं न जाने क्यूं
पर बार बार तुम्हारी बातों से यह जताना कि हम अलग हैं, और अलग होगे,
ये बाते बोहोत तकलीफ देती हैं।
तुझे पता है इतना हक किसी को मिला नही है ,आज तक न मैने इतनी बाते सुनी मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यूं ? मैं तुमसे कुछ कह नही पाता क्यू ? मैं तुम्हारी तरफ झुकने लगा हूं, मुझे नही पता ,मैं कब तुमसे इतने अदब से पेश आने लगा, मैं कुछ जानता ही नहीं मेरे लिए ये सिर्फ एक ख्वाब है ,जिसकी न मुझे शुरुआत का पाता चला और अब मैं न चाहता भी नही हुं की मुझे अंत का पता चले ,ये सारी बातें ये तुम्हारा मुझसे मोहब्बत मुझे लगता है भ्रम है मेरा .......क्योंकि इस हद तक तो मैने कभी स्वयं को भी नही चाहा, पता ही नही लग रहा मुझे की मेरी अंतरात्मा आखिर चाहती क्या है ,और ऐसा नही है कि तुम्हारे साथ मै दुखी हु ,और ऐसा भी स्वतंत्र रूप से कहना सम्भव नही है ,कि हां मैं खुश हूं, मैं खुद समझने में सक्षम नही हुं।
ऐसा नही है कि मेरे मन में ये विचार हो की तुम लायक नहीं हो, नही ऐसा बिलकुल नही है ,बल्कि मुझे ऐसा लगता है मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं, मेरे लिए तुम्हारा प्रेम आवश्यक है,पर यह बात मेरे लिए निरर्थक है क्युकी मेरे लिए तुम्हारा प्रेम नही तुम्हारी मेरे जीवन में होने वाली उपस्थिति आवश्यक है और ये अब अनिवार्य होती जा रहीं है , संभवतया मै कभी कल्पना करने बैठ जाऊं, कि तुम्हारे बिन कैसे होगा तो सब बेरंग होगा, बस काला और सफेद वैसे भी अब इस रंग को में अपने मुकद्दर में चाहता भी हूं, पर तुम्हारी उपस्थिति मेरे जीवन आवश्यक है, तब भी तुम कभी मेरे लिए बंधे नही हो.... तुम आए थे स्वेक्षा से जाओगे भी स्वेक्षा से मेरी तरफ से तुम पूरी तरह स्वतंत्र हो ,मैं प्रयास करूगा कि शायद तुम रुको पर यदि तुम निश्चय कर लो तो फिर रुकना मत और तुम हमेशा से स्वतंत्र हो रुकने के लिए भी और जाने के लिए भी बाकी ये मनुष्य शरीर है, भावुक है तो ये सारी भावनाओ का बाहर आना भी आम बात होगी ।
पर मेरे लिए ये बात कहना अब भी दुविधापूर्ण हैं, की मुझे तुमसे प्रेम है क्योंकि मैं स्वयं इस उलझन में हूं कि है या नही है।
और मैं तो इस बात को भी नही मान पा रहा हुं, कि तुम्हें मुझसे कुछ है या नही है बस इसी उलझन में रहता हु और तुम कहते हो न तुम्हें ही सोचता हूं तो हां लेकिन मैं तुम्हारे बारे में भी मैं यही सोचता हूं कि ये सब सच है झूठ है या मेरा भ्रम।
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