अल्फाज मेरे दिल में उतर जाए तो कहना
दर्द मेरा तेरी आंखों से ना बहे तो कहना
चलता रहा यह सिलसिला मेरी खामोश होने का
मैं झुकती भी रही ,उठती भी रही मदहोशी से
यूं तो तन्हा ही कटा जिंदगी का सफर
कारवां फिर भी चला साथ अश्कों के
कोई पूछे तो हंस कर बता देते हैं हम
हंसना मुस्कुराना मेरी फितरत है
दर्द दिल का जो देखे कोई
ऐसे भी हम कहां काबिल थे
जो चले संग वो साथी मेरे, महफिल के दीवाने थे ।
कदर होती है यहां हसी के गुलदस्ते की
अश्को के यहां बनते अफ़साने हैं
कोई कह दे तेरे दामन से उठा लूं अश्कों को
ऐसा कोई मेहर नुमा नहीं होता
जी चाहे सिमट जाए सांसे। अल्फाज मेरे अब विराम दे
ऐसे जाएं कि लौटे ही नहीं
मेरी रूह मेरी भी अब आराम ले
अल्फाज़ मेरे
#MyPoetry