आज जश्न-ए-नाकामी मना लें कि बदलने वाली तकदीर है, | हिंदी शायरी

"आज जश्न-ए-नाकामी मना लें कि बदलने वाली तकदीर है, ना जाने फिर कब इनसे मुलाक़ात हो ना ये विघात सबको नसीब है"

 आज जश्न-ए-नाकामी मना लें 
कि बदलने वाली तकदीर  है, 

ना जाने फिर कब इनसे मुलाक़ात हो 
ना ये विघात सबको नसीब है

आज जश्न-ए-नाकामी मना लें कि बदलने वाली तकदीर है, ना जाने फिर कब इनसे मुलाक़ात हो ना ये विघात सबको नसीब है

#alone

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