मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है मन जित | हिंदी कविता

"मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है मन जितना साफ़ दिल उतना ही नादान है आंखों में आसूं के साथ मन में उम्मीद लिए , हर सुबह सूरज से पहले जगते देखा है मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है उनके अटुट विश्वास का हर दिन , लोगों को मजाक बनाते देखा है चुपचाप हर इल्जाम सहते देखा है और जब बात मेरी हो तो, पत्थर (भगवान्) से भी लड़ते देखा है मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है जब भी उसे खुद के अस्तित्व के लिए लड़ना होता है, तो हर वक्त कहीं कोने में ही खड़े देखा है पर जब कभी बात उनके बच्चों कि हो, तो उसकी जुबान पे तलवार से तेज धार देखा है मैंने अपनी मां को हर दूसरे दिन रोते देखा है ©Aruhi Priya"

 मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है
मन जितना साफ़ दिल उतना ही नादान है
आंखों में आसूं के साथ मन में उम्मीद लिए ,
हर सुबह सूरज से पहले जगते देखा है
मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है
उनके अटुट विश्वास का हर दिन ,
लोगों को मजाक बनाते देखा है
चुपचाप हर इल्जाम सहते देखा है
और जब बात मेरी हो तो,
पत्थर (भगवान्) से भी लड़ते देखा है
मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है
जब भी उसे खुद के अस्तित्व के लिए लड़ना होता है,
तो हर वक्त कहीं कोने में  ही खड़े देखा है
पर जब कभी बात उनके बच्चों कि हो,
तो उसकी जुबान पे तलवार से तेज धार देखा है
मैंने अपनी मां को हर दूसरे दिन रोते देखा है

©Aruhi Priya

मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है मन जितना साफ़ दिल उतना ही नादान है आंखों में आसूं के साथ मन में उम्मीद लिए , हर सुबह सूरज से पहले जगते देखा है मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है उनके अटुट विश्वास का हर दिन , लोगों को मजाक बनाते देखा है चुपचाप हर इल्जाम सहते देखा है और जब बात मेरी हो तो, पत्थर (भगवान्) से भी लड़ते देखा है मैंने अपनी मां को हर दुसरे दिन रोते देखा है जब भी उसे खुद के अस्तित्व के लिए लड़ना होता है, तो हर वक्त कहीं कोने में ही खड़े देखा है पर जब कभी बात उनके बच्चों कि हो, तो उसकी जुबान पे तलवार से तेज धार देखा है मैंने अपनी मां को हर दूसरे दिन रोते देखा है ©Aruhi Priya

सिर्फ मां

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