ज़िन्दगी की कतार में हैं ख़ड़े कौन जाने के कितना आगे | हिंदी Poetry

"ज़िन्दगी की कतार में हैं ख़ड़े कौन जाने के कितना आगे हैं कितने रिश्ते यहा पे हैं सच्चे,कौन से हैं जो कच्चे धागे हैं हमने तो उम्र भर दिया ही हैं, निसबतन कितने हम अभागें हैं जान जाती हैं,चली जाए फिर हम से फ़रियाद नही होती हैं जिंदगी और भी मसलो से भरी शय तो है ये कहा एक ग़म पे रोती हैं हमने पाँवो में सौ छाले कमाए देखो एक भी आँख में हैं अपना इंतेज़ार नहीं मैं जियूँ या मरु जो चाहे करु वो शक़्स इत्मीनान से हैं, उसे प्यार नहीं यू भी अच्छा है अकेला रह जाना करना यू खुद को बेकरार नहीं मैंने सब घाव गिन के देखे है मरहमो का अब कोई इंतज़ार नहीं एक ये ईमान मेरा नही बिक ने वाला मैंने , मेरी जान ,मग़र ख़रीदार बहुत देखे हैं हम को हासिल अकेले रहना है साथ कि क़ीमत सर ए बाजार मुक़र्रर ही सही अब ना कोई क़शमक़श रही बाक़ी हमने इतवार बहुत देखे हैं देखा है दरख्तों का यू फ़ना हो जाना तूफान का थमना और पतवार बहुत देखें है मेरे संग चार क़दम चलने को बेताब शहसवार बहुत देखे हैं... मेरा मसला हैं ,जो भी हो हासिल रहे वो उम्र भर फिर साथ रहे ये अलग दौर हैं बेबाक़ यहाँ, पल दो पल के हमराह बहुत देखें हैं... ©ashita pandey बेबाक़"

 ज़िन्दगी की कतार में हैं ख़ड़े
कौन जाने के कितना आगे हैं
कितने रिश्ते यहा पे हैं सच्चे,कौन से हैं
जो कच्चे धागे हैं
हमने तो उम्र भर दिया ही हैं, निसबतन कितने हम अभागें हैं
जान जाती हैं,चली जाए फिर
हम से फ़रियाद नही होती हैं
जिंदगी और भी मसलो से भरी शय तो है
ये कहा एक ग़म पे रोती हैं
हमने पाँवो में सौ छाले कमाए देखो
एक भी आँख में हैं अपना इंतेज़ार नहीं
मैं जियूँ या मरु जो चाहे करु 
वो शक़्स 
इत्मीनान से हैं, उसे प्यार नहीं
यू भी अच्छा है अकेला रह जाना
करना यू खुद को बेकरार नहीं
मैंने सब घाव गिन के देखे है
मरहमो का अब कोई इंतज़ार नहीं
एक ये ईमान मेरा नही बिक ने वाला
मैंने ,
मेरी जान ,मग़र
ख़रीदार बहुत देखे हैं
हम को हासिल अकेले रहना है
साथ कि क़ीमत सर ए बाजार मुक़र्रर ही सही
अब ना कोई क़शमक़श
रही बाक़ी
हमने इतवार बहुत देखे हैं
देखा है दरख्तों का यू फ़ना हो जाना
तूफान का थमना
और पतवार बहुत देखें है
मेरे संग चार क़दम चलने को 
बेताब 
शहसवार बहुत देखे हैं...
मेरा मसला हैं ,जो भी हो हासिल
रहे वो उम्र भर फिर साथ रहे
ये अलग दौर हैं 
बेबाक़
यहाँ, पल दो पल के हमराह बहुत देखें हैं...

©ashita pandey  बेबाक़

ज़िन्दगी की कतार में हैं ख़ड़े कौन जाने के कितना आगे हैं कितने रिश्ते यहा पे हैं सच्चे,कौन से हैं जो कच्चे धागे हैं हमने तो उम्र भर दिया ही हैं, निसबतन कितने हम अभागें हैं जान जाती हैं,चली जाए फिर हम से फ़रियाद नही होती हैं जिंदगी और भी मसलो से भरी शय तो है ये कहा एक ग़म पे रोती हैं हमने पाँवो में सौ छाले कमाए देखो एक भी आँख में हैं अपना इंतेज़ार नहीं मैं जियूँ या मरु जो चाहे करु वो शक़्स इत्मीनान से हैं, उसे प्यार नहीं यू भी अच्छा है अकेला रह जाना करना यू खुद को बेकरार नहीं मैंने सब घाव गिन के देखे है मरहमो का अब कोई इंतज़ार नहीं एक ये ईमान मेरा नही बिक ने वाला मैंने , मेरी जान ,मग़र ख़रीदार बहुत देखे हैं हम को हासिल अकेले रहना है साथ कि क़ीमत सर ए बाजार मुक़र्रर ही सही अब ना कोई क़शमक़श रही बाक़ी हमने इतवार बहुत देखे हैं देखा है दरख्तों का यू फ़ना हो जाना तूफान का थमना और पतवार बहुत देखें है मेरे संग चार क़दम चलने को बेताब शहसवार बहुत देखे हैं... मेरा मसला हैं ,जो भी हो हासिल रहे वो उम्र भर फिर साथ रहे ये अलग दौर हैं बेबाक़ यहाँ, पल दो पल के हमराह बहुत देखें हैं... ©ashita pandey बेबाक़

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