जितना चाहा है उन्हें टूट कर उससे कही ज्यादा खुद क | हिंदी कविता

"जितना चाहा है उन्हें टूट कर उससे कही ज्यादा खुद को जुदा पाया है उन्हें तो गैरों की परवाह थी हमे उनकी परवाह थी हर एक पल की आस थी पता ना था इस दिल विल के खेल में एक रोज ये दिल कटी पतंग बन जाएगी..!! ©Akanksha Srivastava"

 जितना चाहा है उन्हें टूट कर

उससे कही ज्यादा खुद को जुदा पाया है

उन्हें तो गैरों की परवाह थी 

हमे उनकी परवाह थी

 हर एक पल की आस थी

पता ना था इस दिल विल के खेल में

एक रोज ये दिल कटी पतंग बन जाएगी..!!

©Akanksha Srivastava

जितना चाहा है उन्हें टूट कर उससे कही ज्यादा खुद को जुदा पाया है उन्हें तो गैरों की परवाह थी हमे उनकी परवाह थी हर एक पल की आस थी पता ना था इस दिल विल के खेल में एक रोज ये दिल कटी पतंग बन जाएगी..!! ©Akanksha Srivastava

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