कलाई पर बाँध कर रेशम की डोरी, बड़ी खुस हुई आज वो छो | हिंदी कविता

"कलाई पर बाँध कर रेशम की डोरी, बड़ी खुस हुई आज वो छोरी, भाई के हाथों को देख कर कहा, भाई की कलाई लगती है गोरी-गोरी। आरती उतार कर भाई को टिका लगाती है, बदले में उससे उपहार पाती है, हाथो पर बाँध कर राखी, वो अपना त्यौहार मनाती है। फिर मिठाइयों का दौर शुरू होता है, भाई थोड़ी खुद खाता है थोड़ी बहन को खिलाता है, कुछ देर को झगड़ते है दोनों, अंत में सब ठीक हो जाता है।। ©Kajal Sugandh"

 कलाई पर बाँध कर रेशम की डोरी,
बड़ी खुस हुई आज वो छोरी,
भाई के हाथों को देख कर कहा,
भाई की कलाई लगती है गोरी-गोरी।

आरती उतार कर भाई को टिका लगाती है,
बदले में उससे उपहार पाती है,
हाथो पर बाँध कर राखी,
वो अपना त्यौहार मनाती है।

फिर मिठाइयों का दौर शुरू होता है,
भाई थोड़ी खुद खाता है थोड़ी बहन को खिलाता है,
कुछ देर को झगड़ते है दोनों,
अंत में सब ठीक हो जाता है।।

©Kajal Sugandh

कलाई पर बाँध कर रेशम की डोरी, बड़ी खुस हुई आज वो छोरी, भाई के हाथों को देख कर कहा, भाई की कलाई लगती है गोरी-गोरी। आरती उतार कर भाई को टिका लगाती है, बदले में उससे उपहार पाती है, हाथो पर बाँध कर राखी, वो अपना त्यौहार मनाती है। फिर मिठाइयों का दौर शुरू होता है, भाई थोड़ी खुद खाता है थोड़ी बहन को खिलाता है, कुछ देर को झगड़ते है दोनों, अंत में सब ठीक हो जाता है।। ©Kajal Sugandh

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