"आसमा में बुने तारो की
चादरे जो ओढ़ी थी
सावन में झूलते झूलो पर
लबों की तबस्सुम जो छोड़ी थी
धीरे धीरे..
सब ख़त्म हो रहा था..
गुलाब और काटों की लड़ाई में
राहें गुलाब की ओर मोड़ी थी
इक चहकती चिड़िया सी
खुशमिजाज़ी खुद से जोड़ी थी
धीरे धीरे....
सब खत्म हो रहा था"
आसमा में बुने तारो की
चादरे जो ओढ़ी थी
सावन में झूलते झूलो पर
लबों की तबस्सुम जो छोड़ी थी
धीरे धीरे..
सब ख़त्म हो रहा था..
गुलाब और काटों की लड़ाई में
राहें गुलाब की ओर मोड़ी थी
इक चहकती चिड़िया सी
खुशमिजाज़ी खुद से जोड़ी थी
धीरे धीरे....
सब खत्म हो रहा था