तुम्हारी मुस्कुराहटों को देख कर ही आती है,
मेरी काव्य शैली में अनूठा रस,
तुम्हारी ही खिले चेहरे का प्रस्फुटन पा,
निहित हो जाती हैं इसमें अलंकार,
सघन खुली लटों में उलझ कर ही लेखनी,
हो उठता है मोहक, सरल,सरस,
तुम्हारे सजल नेत्रों की अनुभूति पा,
डूब जाते है छंद वियोग के तरल में,
बस तुम बिन मानो सब निराधार,
तुम ही तुम हो मस्ती में, लय में,
तुम ही तो हो हृदय के निलय में,
छवि है तुम्हारी ही सुघर प्रेमालय में,
तुम ही तुम हो बांहों के वलय में,
©Akshay Shivam
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