कच्चे माटी से मन को जिसने,
एक सकल साॅंचे में ढाला है।
चंचल बालक के मन को तुम्हीं ने,
अज्ञान स्याह से निकाला है।
जीवन में हमारे नि:संदेह यही तो,
एक उम्मीद का दीप जलाते है।
यक़ीनन,..ये शिक्षक कहां भुलाए जाते है?
©Ritika Vijay Shrivastava
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