तो क्या ये आखरी ख्वाहिश है, अच्छा भूल जाऊं
जहा भी, जो भी है तेरे अलावा, भूल जाऊं
तो क्या ये दूसरा ही इश्क असली इश्क समझू
तो पहला तजुर्बे की देन में था, भूल जाऊं
तो क्या इतना ही आसान है किसी को भूल जाना
कि बस बातों ही बातों में बुलाता, भूल जाऊं
कभी कहता हूं उसको याद रखना ठीक होगा,
मगर फिर सोचता हूं फायदा क्या भूल जाऊं।
©shubham pandey
#copied