इस कलयुग में
मनुष्य ही
असुर हैं और आसुरी भी
मन के भाव और भावनाएं दूषित हो
तो नकारात्मक सोच
और विकार ग्रसित कर देती हैं
मन के विकार मनके छह प्रकार के विकार उत्पन्न होते है। इनको छह रीपु भी कहते है। यथा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मात्सर्य
स्वार्थ , ईर्ष्या , क्रोध , अहंकार , घमंड, अभिमान , गुस्सा ,
लालची स्वभाव ,
नास्तिक व्यवहार ,
असत्य ,झूठ ,
अपशब्द , दुष्टता,
यह सब नरक के द्वार खोलते हैं
और इन्हीं सबसे मनुष्य की पतन होती हैं
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इस कलयुग में
मनुष्य ही
असुर हैं और आसुरी भी
मन के भाव और भावनाएं दूषित हो
तो नकारात्मक सोच
और विकार ग्रसित कर देती हैं
मन के विकार मनके छह प्रकार के विकार उत्पन्न होते है। इनको छह रीपु भी कहते है। यथा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मात्सर्य
स्वार्थ , ईर्ष्या , क्रोध , अहंकार , घमंड, अभिमान , गुस्सा ,