खुद की नज़रों में टूटा हुआ तारा था मैं
उनकी नज़रों में मैं माह-ए-कामिल हुआ
बा-खुदा तेरी मर्ज़ी क्या से क्या हुई
मैं कब उनकी ज़िंदगी में शामिल हुआ
हर लम्हा जो आज़ाबों में गुज़रता था
उनके आने से खुशीयों से कामिल हुआ
दीवार-ओ-दर की कैद से निकला मैं
तू मेरी ज़िंदगी में जबसे दाखिल हुआ
यकीं मुश्किल है अपनी खुशनसीबी पर
पाकर उन्हें खोने के डर से ग़ाफ़िल हुआ
#NaseebApna