जख्म हो या मरहम, सब कुछ धीरे धीरे हौले हौले, गुजर | हिंदी कविता Video

"जख्म हो या मरहम, सब कुछ धीरे धीरे हौले हौले, गुजर जाता है, आंशु हो, या मुश्कान सब कुछ ढल जाता है, दिन रात में और रात फिर से दिन में ढल जाता है, वख्त ने बदलते अंदाज पर, कुछ साज़ लिखे है, गुज़रते हुए बदलाव पर, कुछ अल्फ़ाज लिखें है....... ©Prashant Roy "

जख्म हो या मरहम, सब कुछ धीरे धीरे हौले हौले, गुजर जाता है, आंशु हो, या मुश्कान सब कुछ ढल जाता है, दिन रात में और रात फिर से दिन में ढल जाता है, वख्त ने बदलते अंदाज पर, कुछ साज़ लिखे है, गुज़रते हुए बदलाव पर, कुछ अल्फ़ाज लिखें है....... ©Prashant Roy

#hardtime #सब ढल जाता है।

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