चाँद की ऊँचाई बहुत है,फिर भी छूने का दंभ रखता हूँ। | हिंदी कविता Video

"चाँद की ऊँचाई बहुत है,फिर भी छूने का दंभ रखता हूँ। जोश रगो में इतना हैं कि धरती से उड़ान भरता हूँ।। टिम-टिम करते तारों की चमक,मुझे ऊर्जा देती है, हिलते हुए सागर की लहरें,हंसके विदाई करती है,, पहुँचे होंगे कई महान वहाँ,अपना लक्ष्य साधकर, मैं चला वही हवा के संग,गुब्बारे को बांधकर,, इस चाँद की दूरी नापने का,साहस रखता हूँ। जोश रगो में इतना हैं कि धरती से उड़ान भरता हूँ।। ©Satish Kumar Meena "

चाँद की ऊँचाई बहुत है,फिर भी छूने का दंभ रखता हूँ। जोश रगो में इतना हैं कि धरती से उड़ान भरता हूँ।। टिम-टिम करते तारों की चमक,मुझे ऊर्जा देती है, हिलते हुए सागर की लहरें,हंसके विदाई करती है,, पहुँचे होंगे कई महान वहाँ,अपना लक्ष्य साधकर, मैं चला वही हवा के संग,गुब्बारे को बांधकर,, इस चाँद की दूरी नापने का,साहस रखता हूँ। जोश रगो में इतना हैं कि धरती से उड़ान भरता हूँ।। ©Satish Kumar Meena

चाँद की ऊँचाई

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