कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता, कभी धरती तो क

"कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता, कभी धरती तो कभी आसमान है पिता, जन्म दिया है अगर माँ ने, जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता, कभी कंधे पे बिठा के मेला दिखाता है पिता, कभी बनके घोड़ा घुमाता है पिता, माँ अगर पैरों पर चलना सिखाती है, पैरों पर खड़ा होना सिखाता है पिता। ©sangit"

 कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता,
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता,
जन्म दिया है अगर माँ ने,
जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता,
कभी कंधे पे बिठा के मेला दिखाता है पिता,
कभी बनके घोड़ा घुमाता है पिता,
माँ अगर पैरों पर चलना सिखाती है,
पैरों पर खड़ा होना सिखाता है पिता।

©sangit

कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता, कभी धरती तो कभी आसमान है पिता, जन्म दिया है अगर माँ ने, जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता, कभी कंधे पे बिठा के मेला दिखाता है पिता, कभी बनके घोड़ा घुमाता है पिता, माँ अगर पैरों पर चलना सिखाती है, पैरों पर खड़ा होना सिखाता है पिता। ©sangit

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