अक्सर छुपा लेता हूं खुद को
खुद की ही परछाई से
कहीं पूछ ना ले क्या कर रहे हो आजकल ..
एक और दिवाली बीती
इसी बंद कमरे में
पिघलती मोमबत्ती ने पूछा,
तुम घर क्यों नहीं जाते आजकल ..
टायरों में आग भरकर पूरा गांव रोशन करने वाला
बड़े शहर में रोशनी को तरसता है आजकल ...
दिवाली की छुट्टी से पहले
वो क्लास की अंतिम घंटी का बजना,
फिर एक भारी भरकम बैग लेकर
पापा के आने तक वो राह तकना
आज फिर खड़ा हूं उसी छत पर
सूनी सड़कों को हूँ ताकता
अब मुझे घर ले जाने कोई आता क्यों नहीं आजकल ...
शायद हर चिंगारी की यही कहानी है,
कुछ पल को है रोशन और फिर बुझ जानी है ।
और शायद ऐसी ही होती जिंदगानी है ।
और फिर मैं अचानक हँसा,अपने कमरे से निकला,
बाहर एक टिमटिमाती दिये से पूछा
आखिर कब आओगी मेरी दहलीज तक ..
ओ धीरे से मुस्कुराई और बोली
बस आ ही जाऊंगी आजकल😊😊😊
By- Jiv @ Akshay
©AKSHAY
#WoRaat