दस्तर्श पे तरस एक सक्स, हवस और बस, पहल फिजूल नही स | हिंदी Shayari

"दस्तर्श पे तरस एक सक्स, हवस और बस, पहल फिजूल नही सब देखा इस बरस, जिस्मों की बुनते है,रंगीन नुमाइया कुछ रकीब एक वक्त पर हो जाता है प्यार बस फिर बस, लाख कोशिश की थी मेने बचाने की उसे मेरे विश्वास से ज्यादा था भ्रम उसका फिर में भी हो गया बेवश..... मगर तुम्हे बर्बाद होते हुए ,नही देख सकता था अपना समझते है इसलिए समझाते है फरेब को छोड़ हकीकत पर आओ कम से कम अपनी मां और परिवार का ख्याल करो लेकिन वो अपने फैसले से नही हुई टस से मस ,,फिर क्या बस..!!#🙏 ©Amit bhadauriya"

 दस्तर्श पे तरस एक सक्स, हवस और बस,
पहल फिजूल नही सब देखा इस  बरस,
जिस्मों की बुनते है,रंगीन नुमाइया कुछ रकीब
  एक वक्त पर हो जाता है प्यार बस फिर बस,
लाख कोशिश की थी मेने बचाने की उसे
मेरे विश्वास से ज्यादा था भ्रम उसका 
फिर में भी हो गया बेवश.....
मगर तुम्हे बर्बाद होते हुए ,नही देख सकता था
अपना समझते है इसलिए समझाते है 
 फरेब को छोड़ हकीकत पर आओ
कम से कम अपनी मां और परिवार का ख्याल करो
 लेकिन वो अपने फैसले से नही हुई 
 टस से मस ,,फिर क्या बस..!!#🙏

©Amit bhadauriya

दस्तर्श पे तरस एक सक्स, हवस और बस, पहल फिजूल नही सब देखा इस बरस, जिस्मों की बुनते है,रंगीन नुमाइया कुछ रकीब एक वक्त पर हो जाता है प्यार बस फिर बस, लाख कोशिश की थी मेने बचाने की उसे मेरे विश्वास से ज्यादा था भ्रम उसका फिर में भी हो गया बेवश..... मगर तुम्हे बर्बाद होते हुए ,नही देख सकता था अपना समझते है इसलिए समझाते है फरेब को छोड़ हकीकत पर आओ कम से कम अपनी मां और परिवार का ख्याल करो लेकिन वो अपने फैसले से नही हुई टस से मस ,,फिर क्या बस..!!#🙏 ©Amit bhadauriya

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