तुम प्रेरणा हो मेरी,तुम साधना हो मेरी
तुम सामने हो मगर,तुम कल्पना हो मेरी
मैं शब्द हूं तुम सुर हो,
मैं दीप हूं तुम नूर हो
ना हो परी ना हूर हो,
तुम मेरा कोहिनूर हो,
मैं कहाँ का कवि था,
मैं तो कोई नहीं था
मैंने न कोई सच्ची लिखी थी कविता,
पर जबसे तुम जिंदगी में हो आयी,
पता नहीं कौन सा जादू हो लाई,
मेरे शब्द अपने-आप छंद में ढल जाते हैं,
और मेरे ख्याल कविता बन जाते हैं,
मेरे स्वप्न-नींद-रात-चाँद-हर्ष सब तुम हो,
मेरे कवि होने की वजह एक सिर्फ तुम ही हो
तुम प्रेरणा हो मेरी,तुम साधना हो मेरी
तुम सामने हो मगर,तुम कल्पना हो मेरी
तुम प्रेरणा हो मेरी, तुम प्रेरणा हो मेरी..!!
©अल्फाज़
तुम हो...