White ग़ज़ल :- हसीनों के कातिल इशारों ने मारा  हुआ प | हिंदी शायरी

"White ग़ज़ल :- हसीनों के कातिल इशारों ने मारा  हुआ प्यार तो बेवफ़ाओं ने मारा  थी हसरत बहुत डूब जाने की जिन में  मुझे उन नशीली निगाहों ने मारा  मुहब्बत में मुझपे चला जब मुकदमा  अदालत के झूठे गवाहों ने मारा  हुआ फिर अचम्भा पलट कर जो देखा  हमें तो हमारी वफ़ाओं ने मारा  मुक़द्दर पे अपने वो हैरान होगा जो पत्थर मुझे गुनहगारों ने मारा  बचेंगे कहाँ से ये आशिक जहाँ में  हमेशा इन्हें  बेवफ़ाओं ने मारा  गरीबों में चाहत सिसकती रहेगी  हसीनों के ऊँचे ख़यालों ने मारा  कहाँ हीर रांझा जनम फिर से लेंगे  उन्हें जबसे जग के रिवाज़ों ने मारा  नसीहत सभी दे रहें हैं प्रखर को  पता भी है खंज़र हज़ारों ने मारा  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 White ग़ज़ल :-
हसीनों के कातिल इशारों ने मारा 
हुआ प्यार तो बेवफ़ाओं ने मारा 
थी हसरत बहुत डूब जाने की जिन में 
मुझे उन नशीली निगाहों ने मारा 
मुहब्बत में मुझपे चला जब मुकदमा 
अदालत के झूठे गवाहों ने मारा 
हुआ फिर अचम्भा पलट कर जो देखा 
हमें तो हमारी वफ़ाओं ने मारा 
मुक़द्दर पे अपने वो हैरान होगा
जो पत्थर मुझे गुनहगारों ने मारा 
बचेंगे कहाँ से ये आशिक जहाँ में 
हमेशा इन्हें  बेवफ़ाओं ने मारा 
गरीबों में चाहत सिसकती रहेगी 
हसीनों के ऊँचे ख़यालों ने मारा 
कहाँ हीर रांझा जनम फिर से लेंगे 
उन्हें जबसे जग के रिवाज़ों ने मारा 
नसीहत सभी दे रहें हैं प्रखर को 
पता भी है खंज़र हज़ारों ने मारा 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White ग़ज़ल :- हसीनों के कातिल इशारों ने मारा  हुआ प्यार तो बेवफ़ाओं ने मारा  थी हसरत बहुत डूब जाने की जिन में  मुझे उन नशीली निगाहों ने मारा  मुहब्बत में मुझपे चला जब मुकदमा  अदालत के झूठे गवाहों ने मारा  हुआ फिर अचम्भा पलट कर जो देखा  हमें तो हमारी वफ़ाओं ने मारा  मुक़द्दर पे अपने वो हैरान होगा जो पत्थर मुझे गुनहगारों ने मारा  बचेंगे कहाँ से ये आशिक जहाँ में  हमेशा इन्हें  बेवफ़ाओं ने मारा  गरीबों में चाहत सिसकती रहेगी  हसीनों के ऊँचे ख़यालों ने मारा  कहाँ हीर रांझा जनम फिर से लेंगे  उन्हें जबसे जग के रिवाज़ों ने मारा  नसीहत सभी दे रहें हैं प्रखर को  पता भी है खंज़र हज़ारों ने मारा  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :-
हसीनों के कातिल इशारों ने मारा 
हुआ प्यार तो बेवफ़ाओं ने मारा 
थी हसरत बहुत डूब जाने की जिन में 
मुझे उन नशीली निगाहों ने मारा 
मुहब्बत में मुझपे चला जब मुकदमा 
अदालत के झूठे गवाहों ने मारा 
हुआ फिर अचम्भा पलट कर जो देखा 

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