"// गज़ल //
ये बादल जो सूरज को यूँ ढ़क लेते है
ये चिराग के बुझने का बदला लेते है
ये दुनिया भी एक खुदरा बजार सी ठहरी
जहाँ महौब्बत पहले लेते फिर देते है
इश्क महोब्बत नाम खुदा का, जिन्दाबाद
जाने क्यों, ये झूठ यहाँ ये सब कहते है"
// गज़ल //
ये बादल जो सूरज को यूँ ढ़क लेते है
ये चिराग के बुझने का बदला लेते है
ये दुनिया भी एक खुदरा बजार सी ठहरी
जहाँ महौब्बत पहले लेते फिर देते है
इश्क महोब्बत नाम खुदा का, जिन्दाबाद
जाने क्यों, ये झूठ यहाँ ये सब कहते है