खुशियों का संसार था
जब साथ मेरा परिवार था
लड़ते झगड़ते पहले भी थे
पर एक दूसरे के लिए प्यार बेशुमार था...
मकान भले न आलीशान था
पर अपनों की हसीं से चहकता हर कोना,हर दीवार था
छोटी छोटी बातों पर लड़ने से लेकर
बड़े से बड़े मसले को साथ मिल कर हल करने में,
सबका योगदान था...
आज उन बातों को याद कर
आंखे भर आती हैं
वक्त मानो रेत की तरह हाथो से फिसलता नज़र आता है
आज आंखो के सामने अपनों की यादों का फ्लैशबैक नज़र आता है
जो न चाहते हुए दिल को बहुत चोट पहुंचाता है...!!
©Neha Goswami
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