मैं जिया ही नहीं मुझे
जीने से पहले ही मार डाला
मैं मरा कभी सच के बिच,
तो कभी झूठो ने किया सच काला ।
मैं देखता रहा दुनिया की तस्वीर
और मुझे तकदीर ने मार डाला ,
मैं दुःखी रहा इंसानों की फितरत से
तो कभी शैतानों ने किया उजाला ।
मैं पुकराता रहा अंधेरों में कातिलों को
और नाम उजालो ने मिटा डाला ,
मैं तनहा ही चल पड़ा कारवाँ बनाने तो
मेहफिलों ने तनहा कर डाला ।
मैं जिया ही नहीं मुझे
जीने से पहले ही मार डाला
मैं मरा कभी सच के बिच,
तो कभी झूठो ने किया सच काला ।
तनहा शायर हूँ 21062020
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©Tanha Shayar hu Yash
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