श्रम कर जीवन नीरस,
हर क्षण निर्दयता चीरत
बालपन बिखरत ज्यों,
रेतीलों महल बिखरत
रद्दी में पाती ढूंढ़त,
मासूमियत भरी सूरत
कलम भी देख देख रोवत,
बालमजदूरी मनमा चीरत
झोला भरो कबाड़ ते दीखत,
अंखियन आंसू मा भीगत
जिन हाथन सलोनी लागे चकरी,
उ-हाथन से पाथर बीनत
कांधे पर बोझा बांधे,
सर्द रातन में ठिठुरत
माघ की तपती दोपहरिया में,
गली - गली भटकत घूमत
कबहु चाय की दुकानन में,
घिस घिस झूठे बरतन धोवत
बालश्रम मा बालपन यूं दरकत,
ज्यों काची अध पकी मटकी फूटत
सर पर धर ईंटन को डेला
बदन पसीना में भीगत
बालपन पे बीतत कठोरता
इतिहास को गौरव लीलत
का होइये उ-समाज को
जहाँ बचपन मजदूरी मा बीतत।।
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