गर जान उतनी भी न थी अशारों में मेरे कि वो 'वाह' कर | English Poetry Vi

गर जान उतनी भी न थी अशारों में मेरे कि वो 'वाह' करे,
फिर क्यों गुजरा है हुजूम 'आह' भरते हुए सुन कर मुझे।।
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