*तुम्हारा पता बताते जाओ...!*
मैं कभी नहीं कहूंगा कि तुम वापस चले आओ,
लेकीन ख़त में क्या लिखूं कुछ तो बताते जाओ...
न ही तुम किसी गैर का घर छोड़कर चले आओ,
कहां रातें बिता रहे हो कुछ तो पता बताते जाओ...
काश तुम कभी मेरी तलाश में घर से चले आओ,
तुम्हारी राह देखें या न देखें कुछ तो बताते जाओ...
अधूरे वादे और किस्से तुम्हारे समेट कर ले जाओ,
सच में तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं पड़ेगी बताते जाओ...
यकीन है बदल गए हो, लौटकर वापस चले जाओ,
यादें तुम्हारी लौटा दूं तुम्हें, कोई पता बताते जाओ...
काफ़ी हद तक मैं तुम्हारा ही हूं देखने चले आओ,
ये दिसंबर बीत न जाए मुझ पर हक़ जताते जाओ...
- राहुल_रायकवार "जज़्बाती"
©जज़्बाती कलम
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