टूटे कांच के टुकड़े जो दास्तान बताते हैं
आईने में वो बात कहां है
ख़ामोशी जितना बयां करती है
लफ़्ज़ों में वो बात कहां है
जज़्बात ज़ाहिर होने में जो खुबसूरती है
बस कह देने में वो बात कहां है
फ़र्क तो है ही तुझमें और मुझमें
तूने सिर्फ कहा है , मैने महसूस किया है
तू उस वक्त में रही है , मैने वो लम्हा जिया है
मैं तो खास समझ रहा था खुद को खातिर तेरे
तेरी तो बातों की यही अदा है
शायद इसलिए कल जो तुझमें बात लगती थी
अब उसका एक अंश भी कहां है
©Sakshi Sharma