ख़त हमने काफी उमीद लगाई थी मेरे मालिक
उसका हाथ ना छूटे हमारे हाथों से
उनका ही साहारा छुट गया जिनसे
हमने मोहबत का इजहार् किया था
उनका खत भी ना पढ़ सके हम
उनके वालिद ने उनका निकाह भी पढ़ा दिया था
कभी सोचा ना ऐसा भी होगा हाल हमारा
अब बिन उनके केस गुजरे गा बिन सावन का साल हमारा
©Senty Bhatia